हिंदू धर्म में प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है. यह पर्व दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है. इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है. इस दिन मृत्यु के देवता माने जाने वाले, यमराज की पूजा करने का विधान है और उनके समस्त दीपक भी जलाया जाता है.इस दिन का क्या महत्व है. आइए जानते है उज्जैन के पंडित आनंद भारद्वाज से विस्तार से.

वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 30 अक्टूबर सुबह 11 बजकर 23 मिनट से हो रही है. इसका समापन 31 अक्टूबर दोपहर 2 बजकर 53 मिनट पर होगा, क्योंकि चतुर्दशी तिथि में संध्या के समय यम दीया जलाया जाता है और यम देवता की पूजा की जाती है, इसलिए नरक चतुर्दशी 30 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी.

अकाल मृत्यु के भय से मिलेगी मुक्ति
धार्मिक मान्यता के अनुसार, नरक चतुर्दशी के दिन यम के नाम का दीपक जलाने से अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है. दीपक जलाकार यम से प्रार्थना की जाती है कि वो नरक के द्वार सदा हमारे लिए बंद रखें, ताकि हमें मोक्ष की प्राप्ति हो सके. इसके अलावा कई लोग बुराई व जीवन में मौजूद नकारात्मकता को दूर करने के लिए भी इस दिन दीपक जलाते हैं.

जानिए कैसा दीपक जलाना होगा शुभ
यमराज के प्रति नरक चतुर्दशी के दिन चौमुखी दीपक ही जलाना चाहिए. दीपक में सरसों का तेल भरना चाहिए. घर की अलग-अलग दिशा में अलग-अलग देवी-देवता का वास होता है. यमराज की दिशा शास्त्रों में दक्षिण दिशा बताई गयी है. इसलिए इस दक्षिण दिशा की तरफ दीपक को रख कर जलाना चाहिए.

भूल से भी ना करें इस दिन ये काम
– यमलोक के देवता कहलाने वाले यमराज की नरक चतुर्दशी के दिन पूजा की जाती है. इसलिए इस दिन किसी भी जीव की हत्या न करें.

– यम की दिशा दक्षिण मानी गयी है. इसलिए इस दिन घर की दक्षिण दिशा को भूल से भी गंदा ना रखें.

– शास्त्रों में तेल का दान विशेष महत्व रखता है, लेकिन इस दिन तेल का दान नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे देवी लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं. साथ ही इस दिन तामसिक भोजन नहीं खाना चाहिए.