भोपाल । प्रदेश में तीन माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में भाजपा व कांग्रेस ही नहीं जुटी हैं, बल्कि इस बार कई छोटे दल भी ताल ठोकने को तैयार हो रहे हैं। अंतर इतना है कि यह छोटे दल एक साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। इन दलों का प्रदेश की करीब एक सैकड़ा सीटों पर असर माना जाता है। इसके लिए इन दलों के नेताओं के बीच बैठकों का दौर जारी है। इस बीच बसपा द्वारा प्रदेश में अकेले चुनाव लडऩे की घोषणा से इस गठबंधन को बड़ा झटका लगा है। उधर, बीते माह भारत राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव और आजाद समाज पार्टी  के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के बीच गठबंधन को लेकर बैठक की जा चुकी है। राव की पार्टी का तेलंगाना और कर्नाटक में अच्छा प्रभाव है, लेकिन प्रदेश में अभी इसका प्रभाव शून्य माना जाता है, लेकिन जिस तरह से बीते एक माह पहले प्रदेश के कई पूर्व जनप्रतिनिधियों ने राव की पार्टी को ज्वाइन किया है, उससे इस पार्टी का असर बढऩा तय है। इसकी वजह है इनमें से कई नेताओं का अपने इलाके में प्रभाव माना जाता है।
फिलहाल जिन छोटे दलों के बीच चुनावी समझौता को लेकर चर्चाएं चल रही हैं उनमें जयस, भीम आर्मी, ओबीसी महासभा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, किसान संगठन शामिल हैं। अगर यह गठबंधन हो जाता है, तो प्रदेश की सरकार बगैर इनके समर्थन के बनना  मुश्किल होगा। ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग, आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार, भ्रष्टाचार तैसे मुद्दों पर ये दल  एक हो रहे हैं।  दरअसल इनमें से कई संगठनों का अपने -अपने इलाकों में बड़ा प्रभाव है। इसमें जयस का आदिवासी बहुल सीटों में अच्छा प्रभाव है। खासतौर पर मालवा निमाड़ अंचल की सीटों पर तो यह संगठन बेहद प्रभावशाली है। इसी तरह से महाकौशल अंचल के तहत आने वाली कुछ सीटों पर गोगापा का भी अब तक के बीते कुछ चुनावों में असर दिखाई देता रहा है। इस मामले में  छोटे दलों के नेताओं का कहना है कि गठबंधन के लिए जल्द ही सभी दलों के प्रमुखों की बैठक होगी। इसमें  18 दल शामिल होंगे। वहीं पूर्व सांसद कंकर मुंजारे, पूर्व विधायक किशोर समरीते, गोगापा से विधायक रहे दरबू सिंह उईके ने मिलकर एक गठबंधन बनाया है।
 प्रदेश में ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग मतदाता 48 फीसदी, अनुसूचित जनजाति वोटर 17 फीसदी और अनुसूचित जाति राज्य की आबादी का 21 फीसदी है। ऐसे में यदि इन जातियों  का गठजोड़ छोटे दल निकाल लेते तो भाजपा, कांग्रेस का खेल बिगडऩे की संभावनाएं हैं। बता दें कि,राज्य मेें ओबीसी आरक्षण का मुद्दा लंबे समय से गर्म है। इससे जुड़े कुछ मामले अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।
 ग्वालियर, चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड अंचल वह इलाका है, जो उप्र की सीमा से सटा हुआ है और इन इलाकों में बसपा और सपा का प्रभाव है। ग्वालियर-चंबल में अजा  नतीजे प्रभावित कर सकते हैं , तो विंध्य में पिछड़ा वर्ग ,बुंदेलखंड में समाजवादियों की जड़े काफी गहरी रही है। इसके अलावा कई ऐसे सामाजिक संगठन है जो विंध्य, ग्वालियर-चंबल और महाकौशल में प्रभाव रखते है। इन संगठनों की भी चुनाव में बड़ी भूमिका होती है। इसी तरह से महाकौशल व विंध्य के कुछ जिलों में गोगापा का तो मालावा निमाड़ में जयस का प्रभाव है।
 छोटे दलों की शुरूआती तैयारी के मुताबिक ये दल चुनाव मैदान में दलित आदिवासी और ओबीसी गठजोड़ बना कर उतर सकते हैं। यदि ये गठबंधन हुआ तो दलित आदिवासी सीटों के मामले में बुंदेलखंड की 25, ग्वालियर, चंबल 16 और विंध्य की 12 सीट समेत महाकौशल की करीब 35 सीटों पर नए राजनीतिक आंकड़े बनेंगे। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटें जीतकर 40.09 फीसदी वोट हासिल किए थे और भाजपा ने 109 सीटों पर जीतकर 41 फीसदी वोट पाए थे।