भारत में अनेकों प्रसिद्ध मंदिर हैं। कुछ मन्दिर अपने पौराणिक इतिहास के कारण, कुछ मंदिर अपनी बनावट के कारण तो वहीं कुछ मंदिर ऐसे भी है जो अपने चमत्कारों के कारण प्रसिद्ध है।

ऐसा ही है यह शिव धाम जो अपने चमत्कार के कारण प्रसिद्ध है। आप भी सोच रहे होंगे ऐसे क्या है वो कारण जिसके चलते यह शिवधाम इतना प्रसिद्ध है। आपको बता दे इस शिव मंदिर में हर 12 साल में बिजली गिरती है। इस लेख में हम आपको बतायेंगे इसके पीछे की पौराणिक कारण, कहां पर स्थित है ये मंदिर और कैसे होता है फिर शिवलिंग ठीक।

यह बिजली महादेव का मंदिर हिमाचल के कुल्लू में स्थित है। कहते है कई हज़ार वर्ष पहले यहां पर कुलान्तक नाम का राक्षस रहता था। एक बार उसने वहां की प्रजा को मारने के लिये व्यास नदी का पानी रोक दिया। यह देख कर भगवान शिव को क्रोध आ गया। उन्होंने प्रजा को बचाने के लिये राक्षस का वध करने की ठानी। यह दृश्य देखने में अजगर की तरह था। महादेव राक्षस के पास गए उन्होंने दैत्य से कहा तुम्हारी पूँछ में आग लग गयी है जैसे ही वह यह देखने के लिए पीछे मुड़ा भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उसकी गर्दन पर प्रहार कर उसका वध कर दिया और घाटी को जलमग्न होने से बचा लिया।

मान्यता है वध के बाद दैत्य का शरीर एक पहाड़ में बदल गया। उस दैत्य के नाम का अपभ्रंश ही कुल्लू है। दैत्य के वध के बाद भगवान शिव ने इंद्र देव से बिजली गिराने के लिए कहा था। तब से यह परंपरा चमत्कारिक रूप से जारी हैं। यह बिजली मंदिर के शिवलिंग पर गिरती है। मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं इस वज्रपात को अपने ऊपर लेते है। बिजली गिरने से शिवलिंग टूट जाता है। लेकिन वहां पर किसी को कोई भी नुकसान नहीं पहुँचता है। क्योंकि स्वयं महादेव उनकी रक्षा के लिए बिजली के वार को अपने ऊपर लेते है तो उन्हें कुछ कैसे हो सकता है। यह प्रक्रिया हर 12 साल में दोहराती है।

महादेव ने जिस प्रकार विष पिकर सबकी रक्षा की थी और नीलकंठ और विषधर नाम से पुकारे गए थे यह तो सभी जानते है। ठीक उसी प्रकार यहां स्वयं अपने ऊपर वज्रपात सहकर बिजली महादेव कहलाते हैं।

वज्रपात के कारण शिवलिंग टूट जाता है। लेकिन हर 12 साल बाद जब यह घटना होती है तो पुजारी शिवलिंग का इलाज करते है। मान्यताओं के अनुसार स्वयं महादेव अपने ऊपर वज्रपात लेते है जिसके कारण उन्हें चोट आती है। तब पुजारी शिवलिंग पर मक्खन लगाते है। इससे महादेव को ठंडक मिलती है और शिवलिंग पुनः जुड़ता चला जाता हैं। शिवलिंग के जुड़ने के बाद उसे पुनः स्थापित किया जाता हैं। पुनः विधि विधान के साथ पूजा अर्चना आरंभ की जाती है। यह घटना हर 12 साल बाद सावन के महीने में घटित होती है। अपनी चमत्कारिक घटना के कारण यह मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है। श्रावण मास में दूर दूर से शिव भक्त दर्शन करने के लिए यहां पर आते है।