18 ओबीसी को अनुसूचित जाति के दर्जे की अधिसूचनाएं रद्द
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की 18 जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल करने की सभी अधिसूचनाओं को बुधवार को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले से प्रदेश सरकार को तगड़ा झटका लगा है। योगी सरकार ने 2019 में एक, जबकि पूर्व की अखिलेश सरकार ने 2016 में इस संदर्भ में दो अधिसूचनाएं जारी की थीं। इससे पहले, हाईकोर्ट ने 24 जनवरी, 2017 को इन जातियों को एससी प्रमाणपत्र जारी करने पर रोक लगाई थी।
चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर की पीठ ने यह फैसला गोरखपुर की संस्था डॉ. भीमराव आंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण और अन्य जनहित याचिकाओं पर दिया है। पीठ ने कहा, संविधान में केंद्र व राज्य सरकारों को ऐसा फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं दिया गया है। इससे पहले, प्रदेश सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता अजयकुमार मिश्रा ने बुधवार को हलफनामा दायर कर कहा कि सरकार के पास अधिसूचना बनाए रखने का सांविधानिक अधिकार नहीं है
इस दलील के आधार पर ही हाईकोर्ट ने याचिकाओं को मंजूर किया और सभी अधिसूचनाएं रद्द कर दीं। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के कामकाज पर भी तल्ख टिप्पणी की। कहा, संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित वर्ग की सूची में बदलाव का अधिकार सिर्फ और सिर्फ देश की संसद को है। सांविधानिक अधिकार न होने के बावजूद यूपी में सियासी फायदे के लिए बार-बार अनुसूचित जातियों की सूची में फेरबदल किया जा रहा था। पीठ ने संविधान के प्रावधानों का बार-बार उल्लंघन करने वाले अफसरों को दंडित करने के भी निर्देश दिए।