पति-पत्नी शादी के बाद नहीं कर सकते अकेले पूजा?
अक्सर बड़े-बूढ़ों को कहते सुना जाता कि पति-पत्नी जीवन रूपी साइकिल के दो पहिए हैं, एक न होने पर दूसरा पहिया डगमगा जाता है। ठीक उसी तरह पति-पत्नी के यदि किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य में साथ शामिल नहीं होते तो पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता। इस संदर्भ में धार्मिक शास्त्रों व ग्रंथों आदि में वर्णन किया गया है कि जिसके अनुसार पति-पत्नी द्वारा साथ में ही पूजा करने से पुण्य व लाभ की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति विवाह के उपरांत अकेले पूजा-अर्चना जैसे किसी भी धार्मिक काय का हिस्सा बनता है, उसकी पूजा महत्व कम हो जाता है। आज हम इस आर्टकिल में हम आपको इसी से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं कि आखिर पति-पत्नी को साथ में क्यों पूजा क्यों करनी चाहिए और ऐसा करने के क्या लाभ हैं। साथ ही साथ बताएंगे कि शास्त्रों के मुताबिक पत्नी को पति के किस ओर बैठना चाहिए।
धर्म कर्म के काम साथ में करने से दांपत्य जीवन में तालमेल बेहतर करने का मौका मिलता है। एकसाथ पूजा पाठ करने और धार्मिक स्थल की यात्रा करने से रिश्ते में आ रहे उतार चढ़ाव और कलह को कम करने में मदद मिलती है। दंपत्ति का एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव भी बढ़ता है।
इसके अलावा शादी के 7 फेरे लेते समय दिए गए वचनों में से ये एक वचन होता है कि विवाह के बाद किसी भी व्रत, धर्म-कर्म के लिए जाएं तो आप मुझे भी अपने साथ लेकर चलें। यही वजह है कि शादी के बाद पति पत्नी को अकेले पूजा नहीं करनी चाहिए और ना ही किसी तीर्थ यात्रा पर अकेले जाना चाहिए। अकेले पूजा से ना तो मनवांछित फल मिलता है और ना ही अकेले में की गई तीर्थ यात्रा सफल होती है। ऐसा माना जोता है कि अकेले पूजा में बैठने से मनोकामनाओं के पूरा होने की संभावना कम रहती है। इसलिए अगर मनचाहे फल की प्राप्ति चाहते हैं तो आप दोनों को साथ में पूजा में बैठना चाहिए।
इसके अलावा अगर आप धार्मिक ग्रंथों पर गौर करें तो ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जहां स्त्री को पुरुषों की शक्ति बताया गया है। चाहे राधा-कृष्ण हों या सियाराम, देवताओं से पहले उनकी शक्ति का नाम लिया जाता है। पत्नी के बिना पति द्वारा किए धार्मिक काम अधूरे माने जाते हैं।
लेकिन जब साथ में बैठकर पूजा कर रहे हों तो भी अक्सर ये सवाल उठता है कि पूजा में पत्नी को अपने पति के किस ओर बैठना चाहिए? पूजा में पत्नी का पति के किस ओर बैठना शुभ माना गया है? तो चलिए इस सवाल का जवाब जानते हैं विस्तार में-
शास्त्रों में कहा गया है कि पत्नी को सदैव पूजा में अपने पति के दाएं हाथ की ओर बैठना चाहिए। पूजा में पत्नी का इस तरह से बैठना शुभ माना जाता है। साथ ही यज्ञ, होम, व्रत, दान, स्नान, देवयात्रा और विवाह आदि कर्मों में भी पत्नी का अपने पति के दाएं हाथ की ओर आसन ग्रहण करना शुभ माना गया है।
इसके अलावा, किसी पूजनीय व्यक्ति के चरण छूते समय, सोते समय और भोजन करते समय के बारे में भी पति-पत्नी की दिशा का निर्धारण किया गया है। कहते हैं कि चरण छूने, सोने और भोजन करने की क्रिया के वक्त पत्नी का सही स्थान पति के बाएं हाथ की ओर है। माना जाता है कि इन कार्यों में दिशा का पालन करने से अच्छा फल प्राप्त होता है। ध्यान रहे कि दिशा के भूल जाने को किसी तरह का अपराध नहीं माना गया है। बल्कि इससे उस कर्म का अत्यधिक फल प्राप्त होने की बात कही गई हो।