विश्व भर में जाना-माना बाग प्रिन्ट मध्यप्रदेश के धार जिले के छोटे से कस्बे में प्राकृतिक रंगों से वस्त्रों पर की जाने वाली परम्परागत ठप्पा छपाई शिल्प है। सर्वप्रथम इसमाईल सुलेमान खत्री ने इस कला को स्थापित किया, जो इस शिल्प के जनक भी है। पिछले चार दशकों से उनके पुत्र बाग प्रिन्ट के सर्वश्रेष्ठ कारीगर माने जाते हैं। खत्री परिवार ने इस पारंपरिक हस्तशिल्प में आधुनिकता का समावेश भी किया, जिससे यह कला भविष्य में जीवित रहे और क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिल सके।

एक समय बाग प्रिन्ट कला अपने पतन के सबसे नाजुक दौर से होकर भी गुजरी है। सरकारी  प्रयासों और खत्री परिवार की मेहनत से आज हजारों शिल्पियों की बडी टीम इस कला को अपना चुकी है। बाग प्रिन्ट आज बाग ही नहीं बल्कि अविश्वसनीय रूप से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मुकाम हासिल कर चुकी है।

उल्लेखनीय है कि बाग प्रिंट के जनक शिल्प गुरू पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार, लाईफ टाईम अर्चिवमेंट, राज्य स्तरीय विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित स्व. श्री इस्माईल खत्री ने इस कला की शुरूआत की थी। आज भी उनकी इस अदभुत कला की विरासत को उनके पुत्रगण खत्री परिवार इसे निरंतर सजा-सवांर कर नई उचाईयां दे रहे है। इसमें बाग प्रिंट के जनक स्व.श्री इस्माईल खत्री के परिवार के सदस्य शिल्पकार सर्वश्री मोहम्मद यूसुफ़ खत्री, मोहम्मद क़ादर खत्री, श्रीमती रशीदा बी खत्री, बिलाल खत्री, मोहम्मद रफ़ीक खत्री, उमर मोहम्मद फारूख खत्री, मोहम्मद काज़ीम खत्री, मोहम्मद आरिफ खत्री, अब्दुल करीम खत्री, गुलाम मोहम्मद खत्री, कासिम खत्री, अहमद खत्री, मोहम्मद अली खत्री उल्लेखनीय योगदान है।

मास्टर क्राफ्ट मेन मोहम्मद युसूफ खत्री

   मोहम्मद युसूफ खत्री ने बाग“ हाथ ठप्पा छपाई की दीक्षा पिता श्री इसमाईल खत्री एवं माता श्रीमती हज्जानी जेतुन बी से बहुत कम  उम्र में ले ली थी। आज उन्हें करीब 40 वर्षों का व्यापक अनुभव है। युसूफ खत्री दो राष्ट्रीय पुरस्कार एवं सात बार अंतराष्ट्रीय यूनेस्को पुरस्कार और भारत में हस्तशिल्प के क्षेत्र में सर्वोच्च “शिल्प  गुरू” सम्मान से सम्मानित और स्वर्ण पदक विजेता है। श्री खत्री को राज्य सरकार द्वारा 8 मार्च 2000 को राज्य स्तरीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

मोहम्मद युसूफ खत्री ने इस कला को नए आयाम देने के लिए अनेक वेजीटेबल कलर डाई का प्रयोग किया। निरन्तर शोध से भारतीय एवं विदेशी बाजारों में परम्परागत बाग हाथ ठप्पा छपाई से निर्मित वस्त्रों की मांग बढ़ी है। आज बाग क्षेत्र के सैकड़ों जनजातीयपिछड़ा वर्ग एवं निर्धन युवाओं को निरंतर प्रशिक्षित किया जा रहा है।

मोहम्मद युसूफ खत्री ने बाग प्रिन्ट हस्तशिल्प वस्तुओं एवं कला का प्रत्यक्ष प्रदर्शन विदेशों में बार्सीलोना स्पेन (यूरोप) में फूड  फेस्टिवल- 1991, हेनोवर जर्मनी (यूरोप) के वर्ल्ड एक्स-पो- 2000, मार्टेनिक (फ्रांस)-2005,  बार्सीलोना स्पेन (यूरोप) में वर्ल्‍ड एक्स-पो-2005, बेहरीन में सुकल हिन्द फेस्टिवल-2006,  बुर्सेल्स में फेस्टिवल ऑफ इण्डिया-2006,  ईटली के मिलान शहर में मेकेफै फेयर-2009, अमेरिका के सेन्टाफे में फोक आर्ट मार्केट 2009 एवं 2017,  कोलम्बिया के बगोटो शहर में आर्टिजन हस्तशिल्प मेला 2009, मिलान इटली फेयर (2010), अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में भारत महोत्सव 2011, केन्द्रीय विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) वस्त्र मन्त्रालय  द्वारा हस्तकला एन्कलेवअशोका होटेल दिल्ली वर्ष 2012 मेंसूरज कुण्ड क्राफ्ट मेला हरियाणा वर्ष 1991 मास्टर क्रियेशन प्रोग्राम दिल्ली 2010, नई दिल्ली के बाल भवन में बाल महोत्सव 1983, कॉमनवेल्थ गेम्स नई दिल्ली 2010, गणतंत्र दिवस परेड समारोह नई दिल्ली 2011 में बाग प्रिंट की झांकी का प्रदर्शनमाण्डू में उप राष्ट्रपति के आगमन पर प्रदर्शनमुख्यमंत्री निवास पर शिल्पी पंचायत गॉलोब बायर-सेलर मीट गोहर महल भोपालम.प्र. बायर-सेलर मीट इन्दौरम.प्र. लघु उद्योग निगम द्वारा एम.पी. एक्सर्पोटेक 2013 भोपालम.प्र. लघु उधोग निगम एवं वर्ष 2013 में इन्वेस्ट मध्य प्रदेश इन्डियास ग्रोथ सेन्टरसेमीनार आमेर ग्रीन्स होटेल  भोपालजयपुर-1997,  चेन्नई- 1994 और मुम्बईनई दिल्लीबैंगलुरु,  कलकत्ताचंडीगढ़जम्मू-कश्मीरअहमदाबादबड़ौदाबाड़मेरभोपालहैदराबादग्वालियरइन्दौर आदि बड़े शहरों में किया है। 

स्‍व. अब्दुल कादर खत्री

अब्दुल कादर ने भारत के प्रमुख फैशन संस्थानों जैसे नेशनल इंस्टीट्यूट आफॅ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ट) नई दिल्लीनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन (अहमदाबाद)स्पोर्टकिंग इंस्टीट्यूट आफॅ फैशन  टेक्नोलॉजी (लुधियाना) एवं एस-डी-पी-एस- वुमेंस कॉलेज इन्दौर सहित अनेक देशी एवं विदेशी छात्र-छात्राओं  को प्रशिक्षित किया।

बाग प्रिन्ट शिल्प में अपने योगदान एवं उत्कृष्टता के लिए अब्दुल कादर को वर्ष 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें वर्ष 2018 में यूनेस्को एवं वर्ल्ड क्राफ्ट्स कॉउंसिल द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय अवार्ड ऑफ एक्सीलेंसवर्ष 1990 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा राज्य स्तरीय पुरस्कार एवं वर्ष 2015 में विश्व के सबसे प्रसिद्ध शिल्प मेले में कला निधि पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्‍व. श्री खत्री की पत्नी श्रीमती रशीदा-बी खत्री को केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय मेरिट पुरस्कार वर्ष 2018 के लिए चुना गया। उन्हें वर्ष-2012 एवं 2014 में  राज्य स्तरीय पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है। हाल ही में उनके पुत्र मोहम्मद आरिफ खत्री को यूनेस्को एवं वर्ल्ड क्रॉफ्ट्स कॉउंसिल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड ऑफक्सीलेंस वर्ष 2021-22 से नवाजा गया है। मोहम्मद खत्री को भी वर्ष 2017 में थाइलैंड में अन्तर्राष्ट्रीय फैशन  डिजाइनर क्रिएशन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। अब्दुल कादर एवं उनके बेटों ने आस्ट्रेलियाजर्मनीदक्षिण अफ्रीकाओमानमलेशियाथाइलैंड जैसे देशों में बाग प्रिन्ट कला का प्रदर्शन कर देश एवं प्रदेश को गौरवान्वित किया है।

 रशीदा-बी खत्री

रशीदा बी का जन्म मध्यप्रदेश के जोबट में 15 मार्च 1967 को हुआ।  बाग प्रिन्ट कला का कार्य अपने ससुर शिल्प गुरू इस्माईल सुलेमानसासु माँ  हज्जानी जैतुन बी एवं पति अब्दुल कादर से सीखा। रशीदा बी से लगभग 700 प्रशिक्षणार्थी इस कला की बारीकियों का ज्ञान ले चुके हैं।

मोहम्मद बिलाल खत्री

     श्री मोहम्मद बिलाल खत्री का जन्म 10 जून 1987 में ग्राम बाग  जिला-धार (म.प्र.) में पारम्परिक बाग प्रिंटरों की रंग-बिंरगी दुनिया में हुआ। उन्होंने 10 वर्ष की आयु में ही अपने पिता और दादाजी से यह शिल्प सीखा। राष्ट्रीय एवं अंतरष्ट्रीय पुरस्कार विजेता, डिजाइनर एवं मास्टर क्राफ्ट्समेन मोहम्मद बिलाल खत्री ने मध्यप्रदेश एवं देश को गौरवान्वित किया है। अमेरिका की मशहूर मैग्जीन हार्पर्स बाजार ने उनकी कला एवं उसकी कार्य विधि का जिक्र कुछ यूं किया है- बिलाल के परिवार के सबसे प्रतिष्ठित ब्लॉकों की विशेषता वाली एक आकर्षक, पारम्परिक शीट देखें।  बिलाल एक मेहनती परिवार से आते हैं जिसने राज्य और राष्ट्रपति पुरस्कार जीते हैं। उनके दादा इस्माइल सुलेमान खत्री को बाग प्रिंट छपाई का जनक माना जाता है। एक पुश्तैनी परिवार से संबंधित होने की जिम्मेदारी को समझते हुए, वह स्पष्ट है, "अगर हम, युवा, इस काम के लिए खुद को प्रतिबद्ध नहीं करते, तो यह लुप्त हो जाता।"

     नेशनल एंड इंटरनेशनल अवार्डी मोहम्मद बिलाल खत्री वर्ष 2018 में मिलान इटली, वर्ष 2017 में गोयांग चीन, वर्ष 2017 में इस्फहान इरान, वर्ष 2014 में मास्को, सेन्ट पीटर्सबर्ग, कालुगा  रूस, दोंगयो एंग चीन एवं वर्ष 2012 में बेहरीन के साथ ही गणतंत्र दिवस परेड समारोह नई दिल्ली 2011 में बाग प्रिंट की झांकी का प्रदर्शन कर चुके हैं। वे 250 से अधिक कारीगरों को भी प्रशिक्षित कर चुके है।

हस्तशिल्प के क्षेत्र में उपलब्धियाँ

मोहम्मद बिलाल खत्री राष्ट्रीय पुरस्कार वर्ष 2018, राष्ट्रीय मेरिट पुरस्कार सर्टिफिकेट  वर्ष 2011 एवं प्रथम विश्वकर्मा राज्य स्तरीय पुरस्कार वर्ष 2010, वर्ष 2016 में वर्ल्ड क्रॉफ्ट्स कॉउन्सल यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार और वर्ष 2014 में रूस के अंतर्राष्ट्रीय इथनोमिर एक्स-पो कालुगा में डिप्लोमा की उपाधि से सम्मानित किए गए हैं। वर्ष 2018 में मिलान इटली में, वर्ष 2017 में गोयांग चीन में, वर्ष 2017 में इसफहान इरान में, वर्ष 2014 में वर्ल्ड क्रॉफ्ट्स कॉउन्सल की 50 वीं गोल्डन जुबली सेलिब्रेसन समिट एवं एक्जीबिशन, दोंगयोंग चीन में बाग प्रिंट का प्रत्यक्ष प्रदर्शन भी किया है। श्री खत्री ने वर्ष 2014 में रूस की मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी फोर द ह्यूमेनिटीज के फाईन आर्ट के स्टूडेंट्स को बाग प्रिन्ट कला का प्रशिक्षण दिया है।

परम्परागत बाग प्रिन्ट कार्य-विधि

            बाग प्रिन्ट वस्त्र छपाई की तकनीक को कई हिस्सों में बाँटा गया हैं। छपाई के लिए कपड़े का चयन सबसे महत्वपूर्ण हैं रंगाई करने हेतु कपड़े को उबाला जाता हैं यह अनिवार्य हैं कि छपाई में प्रयोग होने वाला कपड़ा प्राकृतिक रेशे से ही निर्मित हो। इसके बाद वस्त्र के प्रयोग की प्रवृत्ति अर्थात उसका उपयोग साड़ीसूटचादरड्रेस मटेरियल, स्‍टॉल,  दुपट्टे आदि का निर्धारण किया जाता हैं  इसी आधार पर ब्‍लॉक (भांतो) का चयन किया जाता हैं। सर्वप्रथम कपड़े को काट कर माड़ निकाला जाता हैंइसमें अनेक तकनीकों का प्रयोग किया जाता हैं इस प्रक्रिया से ही यह निर्धारित होता हैं कि कपड़े पर रंग कितना अच्छा चढ़ेगा। 

खारा विधि

कपड़े को सर्वप्रथम पानी में धोकर धूप में सुखाया जाता हैं। बकरी की मेंगनी और अरण्डी तेल के मिश्रण के घोल में पूर्व में तैयार किया गया कपड़ा भिगोया जाता हैंफिर गठरी बना कर कच्ची जमीन पर रख जाता हैंकच्ची जमीन पर रखने से भूमिगत तापमान से कपड़ा अच्छी तरह तैयार हो पाता हैं। 

नदी में एक विशेष प्रकार का प्राकृतिक स्थान बना होता हैजिसे स्थानीय भाषा में होदी कहा जाता है। इस होदी में कपड़े की गठरी को भिगोया जाता है इसके बाद कपड़े को दूसरे पानी से धोया जाता है। कपड़ा जब धुल जाता है तो इसे पैरो तले रौंद कर झाग उत्पन्न किया जाता हैजिसे एक खास प्रक्रिया से 3-4 बार  गुजारा जाता है निथारना प्रक्रिया के बाद कपड़ों को सुखा दिया जाता है इस विधि  को खारा विधि कहते है। सामान्यतः कपड़े को औसतन तीन खारा देना होता है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद कपड़ा अत्यंत मुलायम हो जाता हैं । 

पीला विधि

खारा देने के बाद इसे बहते पानी में तारोकर हयड़ा (हरड़) के पावडर के घोल में टब में रखा जाता है फिर निचोड़कर उस कपड़े को सुखा देते है इसे सिर्फ धूप में ही सुखाया जाता हैयदि इसे छांह में सुखा दिया जाए तो यह हरे रंग में बदल जाता हैजबकि धूप में यह पीले रंग का हो जाता है  यह प्रक्रिया पीला करना  कहलाती है सामान्य भाषा में इसे बेस करना भी कहते हैं। इस तरह कपड़ा छपाई के लिए तैयार हैं। 

लाल विधि

लाल रंग बनाने के लिए फिटकरी को उबाल कर  इसके घोल को किसी मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में रखा जाता है इसके बाद इसे गोन्द या इमली के बीज के आटे में कलफ की तरह पकाया जाता है पकाने के बाद ठण्डा कर पारदर्शी बारीक कपड़े में छानकर छपाई अनुसार घोल को गहरे रंग के लिए तरल (कम गाढ़ा) रखा जाता हैं बारीक रेक डिजाइन हेतु गाढ़ा घोल रखा जाता हैं। 

लाल रंग की छपाई के लिए आवश्यक सामग्री में लकड़ी के पात्र, जिसे स्थानीय भाषा में पालियां (ट्रे) कहा जाता हैं, जरूरी होता है। गद ब्लॉक प्रिन्ट के लिए पालिये में एक करतली (बाँस की जाली) लगाकर उसमें एक ऊनी वस्त्र दो परतों में रखा जाता हैं यदि बारीक प्रिन्ट बनाना हो तो पालिये में रखी जाली में रखे ऊनी वस्त्र पर एक मलमल का कपड़ा रखकर प्रिन्ट बनाई जाती हैं। 

काला रंग विधि

इसके लिए मिट्टी के मटके में लोहे की बारीक पत्तियाँ एवं टुकड़ेगुडचूनागेहूँ के आटे को डालकर सड़ाना पड़ता हैं इसमें लगभग 8 से 10 दिन लग जाते हैंजब यह घोल तैयार हो जाता हैंतब गोन्द या इमली के बीज के आटे में कलफ की तरह  पकाया जाता है उसके बाद इसे प्लास्टिक के बर्तन या मिट्टी के बर्तन में रखा  जाता हैं। पकाने के बाद ठण्डा कर इसे पारदर्शी बारीक कपड़े में छानकर छपाई अनुसार घोल को गहरे रंग के लिए तरल (कम गाढ़ा) रखा जाता हैं बारीक रेक डिजाइन के लिए गाढ़ा घोल रखा जाता हैं।

काला रंग छपाई की आवश्यक सामग्री

पालियां (ट्रे) में गद ब्लॉक प्रिन्ट के लिए एक करतली (बाँस की जाली) लगा कर उसमें एक ऊनी वस्त्र दो परतों में रखा जाता हैं यदि बारीक प्रिन्ट बनाना हो तो पालिये में रखी जाली में रखे ऊनी वस्त्र पर एक मलमल का कपड़ा रख कर प्रिन्ट बनाई जाती हैं। 

काले एवं लाल रंग की छपाई

काले एवं लाल रंग की छपाई के लिए बनाये गये रंगों में इमली के बीज या धावड़े  के गोन्द की लई (पेस्ट) बना कर छपाई करते है। अब कपड़े को अड्डे (टेबल) पर  रख कर लकड़ी के डिजाइन युक्त ब्लॉक (भांतों) से छपाई की जाती हैं इस प्रक्रिया में  ब्लॉक पर हाथ का जोर संतुलित मात्रा में लगाना होता है अन्यथा पूरा कपड़ा बिगड़ सकता हैं इस प्रक्रिया में कोने बनाना भी  महत्वपूर्ण हैंकोना जितने अच्छे से छपता हैंकपड़ा उतना ही सुंदर दिखाई देता हैं छपाई के बाद कपड़े को 8 से 10 दिन तक संग्रहीत कर रखा जाता हैंजिसे  पड़त खिलाना भी कहते हैं।

विछलियाँ विधि

छपाई वाले कपड़े को नदी के बहते पानी में बिछा कर खंगाला जाता हैं। कपड़े को नदी से निकाले बिना कपड़े को पानी के अंदर ही झेर (झटकना) तथा गुलेटा  (अलट-पुलट) एक घण्टे तक किया जाता हैं इससे कपड़े पर लगा अतिरिक्त रंग निकल जाता हैं नदी का प्रवाह देखकर ही विछलियाँ की प्रक्रिया की जाती हैं इसके बाद कपड़े को सुखा दिया जाता हैं । 

भट्टी विधि

विछलियाँ के बाद कपड़े की रंगाई की जाती हैं इस प्रक्रिया को स्थानीय भाषा में भट्टी करना कहते हैं तांबे की कढ़ाव में भट्टी करते हैंइसमें धावड़ी के फूल और आल की जड़डाल कर हल्के गर्म पानी में घोल लेते हैं इसके बाद में विछलियां किया हुआ कपड़ा इस घोल में डुबोया जाता हैं। धावड़ी के फूल का प्रयोग इसलिए किया जाता हैं क्योंकि ये पानी का शुद्धिकरण करते हैं तथा कालालाल एवं सफेद रंग के निखार में सहायक होता हैंफिर घोल से निकाले बिना कपड़े को पात्र के अंदर ही  झेर (झटकना) तथा गुलेटा (अलट-पुलट) दिया जाता हैं। इस दौरान ध्यान रखा जाता हैं कि कपड़ा पूरी तरह पानी में डूबा रहे। महत्वपूर्ण यह हैं कि तांबे का पात्र आग पर गर्म होता रहता हैं और घोल ज्यों-ज्यों गर्म होता हैं त्यों-त्यों फिटकरी और लोहे की जंग का रंग क्रमशः लाल और काला होता जाएगा।

तपाई विधि

नदी के किनारे पत्थरों पर कपड़े को सुखाया जाता हैं और बार-बार गीला किया जाता हैं  धूप और पत्थर की गर्मी प्राकृतिक तौर पर सफेदी (ब्लीचिंग) प्रदान करती हैं। तपाई के बाद कपड़ा तैयार हैंयदि इसे खाकीनीलापीलाहरागुलाबी आदि बनाना हो तो उसके लिए पृथक-पृथक विधियाँ हैं। खाकी रंग धावडे़ के पत्तों या अनार के छिलकों से बनाया जाता हैं धावड़े के पत्ते पानी में डालकरउबाले जाते हैं उबला हुआ पानी छानकर पानी में कपड़े को डुबोया जाता हैंफिर उसे छाँह में ही सुखाया जाता हैं यह विधि 3 से 4 बार दोहराई जाती हैं5वीं बार फिटकरी के घोल में डुबाकर सुखाते हैं इसके बाद कपड़े को साफ पानी में डुबाकर तारो लेते हैं इस तरह पीला खाकी रंग का कपड़ा तैयार होता है। इण्डिगो पौधे के पत्तों को सड़ाकर उसमें सज्जी खार एवं अन्य मिश्रण डालकर नीला रंग तैयार किया जाता हैं इसे नील के पानी में 4 से 5 बार डोब देकर तैयार किया जाता हैं। इसके बाद नीले रंग का कपड़ा तैयार है। 

इण्डिगो का रंगा हुआ कपड़ाअनार के छिलके या धावड़े के पत्तों से बनाया जाता हैं धावड़े के पत्ते पानी में डालकर उबाले जाते हैंउबले पानी में छानकर गर्म पानी में कपड़े को डुबोया जाता हैंफिर उसे छाँह में ही सुखाया जाता हैंयह विधि 3 से 4 बार दोहराई जाती हैं।  इसके बाद 5वीं बार फिटकरी के घोल में डुबाकर सुखाते हैं और साफ पानी में डुबाकर तारो लेते हैं। इस तरह हरा रंग का कपड़ा तैयार होता है। 

उकर रंग बनाने की विधि

इसके लिए मिट्टी के मटके में लोहे की बारीक पत्तियाँ एंव टुकड़ेगुड़चुनागेहूँ के आटे को डाल कर सड़ाना पड़ता हैंजिसमें लगभग 8 से 10 दिन लग जाते हैं जब यह घोल तैयार हो जाता हैंतब इमली के बीज के आटे में कलफ की तरह पकाया जाता है इसके बाद इसे प्लास्टिक के बर्तन या मिट्टी के बर्तन में रखा जाता हैं। पकाने के बाद ठण्डा कर इसे पारदर्शी बारीक कपड़े में छान कर छपाई अनुसार घोल को गहरे रंग के लिए तरल (कम गाढ़ा) रखा जाता हैं तथा बारीक रेक डिजाइन हेतु गाढ़ा घोल रखा जाता हैं। छपाई के बाद साफ पानी में और फिर हरड़ के घोल में डुबा कर उसका रूप रंग प्राप्त होता है। 

**सैयद ताहिर अली**

सेवानिवृत्त संयुक्त संचालक

जनसम्पर्क विभाग, भोपाल

न्यूज़ सोर्स : विशेष लेख