वाशिंगटन । तमाम चेतावनियों के बावजूद हम आज ग्लोबल वार्मिंग को काबू करने के लिए निर्धारित लक्ष्यों को लागू करने में संघर्ष कर रहे हैं। नए अध्ययन में दर्शाया गया है कि ओजन परत हमारी पृथ्वी की सतह के तापमान के लिए कितनी अहम है। इसके नतीजों में से एक यह भी है कि अगर ओजोन परत नहीं होती तो हमारी पृथ्वी 3.5 केल्विन ठंडी होती। ओजोन परत के बारे में अधिकांश यही बताया जाता है कि सूर्य से आने वाला कुछ विकिरण ऊपरी वायुमंडल से टकराकर वापस चला जाता है और बचे हुए में से कुछ वायुमडंल तो कुछ धरती अवशोषित कर लेती है जबकि बाकी पृथ्वी की सतह से टकराकर लौट जाता है। लौटने वाले विकिरण से अधिकांश वापस अंतरिक्ष में जाता है तो उसमें से कुछ वायुमंडल अवशोषित कर ग्रीनहाउस प्रभाव देता है। लेकिन वास्तव में हमारे तापमान और जलवायु वायुमंडल के बहुत से अणुओं की प्रचुरता से लेकर महासारों और वायुमंडलीय संचारण तंत्रों पर निर्भर करते हैं। अधिकांश जलवायु प्रतिमानों ने पृथ्वी की जलवायु में ओजोन परत की भूमिका को नजरअंदाज किया है। लेकिन इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ओजोन परत के व्यापक प्रभाव का अध्ययन किया है। पृथ्वी पर ओजोन परत हमेशा नहीं थी। जीवन से पहले ओजन का वायुमंडल में अस्तित्व ही नहीं था। पृथ्वी का अरबों साल का समय बिना या बहुत ही पतली ओजोन परत के साथ गुजरा है।
 रोचक बात यह है कि आज जहां आणविक ऑक्सजीन वायुमंडल का अच्छा खासा हिस्सा है, उसकी जलवायु में बहुत कम भूमिका है जबकि उससे कहीं ज्यादा ओजोन परत की है।  शोधकर्ताओं ने पृथ्वी की जलवायु का सिम्यूलेशन किया और ऊपरी वायुमंडल में ओजन की मात्रा में विविधता ला कर उन्होंने पृथ्वी के तापमान को संतुलित होने के छोड़ा। उन्होंने पाया कि ओजोन का पृथ्वी की सतह पर गर्माहट लाने का प्रभाव है जिससे पृथ्वी का औसत सतही तापमान 3.5 केल्विन ज्यादा है और यदि ओजोन परत गायब होती है तो इसका जलवायु पर विनाशकारी असर होगा। 
ओजोन की कमी का सबसे प्रमुख प्रभाव ऊपरी समतापमंडल की ठंडा होना होगा जिससे वह नम हवा को अपने पास रख नहीं पाएगी और समतापमंडल सूख जाएगा। पानी की भाप एक अहम ग्रीनहाउस गैस होती है और बिना ग्रीनहाउस प्रभाव के पृथ्वी खत्म हो जाएगी। इसी प्रभाव को ओजोन परत का जिक्र करते समय अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। तापमान के आलावा ओजोन की कमी से और समतापमंडल के ठंडे होने से वायुमंडल में बादलों के निर्माण भी रुक जाएगा जिससे बादल कम और अधिक ऊंचाइयों पर ही नजर आएंगे।
 जहां कुछ जेट धाराएं भूमध्य रेखा के पास मजबूत होंगी तो ध्रुवों के पास की कमजोर हो जाएंगी। जिससे सभी अक्षांशों के मौसमी स्वरूप बुरी तरह से प्रभावित होंगे। यह नतीजा दर्शाता है कि वायुमंडल के जटिल तंत्र में हर घटक की अहम भूमिका है। मालूम हो कि ओजोन परत के महत्व के बहुत बखान होते हैं। ये हमारे लिए रक्षा कवच की तरह काम करती है। 1980 के दशक में जब दुनिया में ओजोन परत में छेद की खबरें आईं तो आनन-फानन मोन्ट्रियल प्रोटोकॉल सख्ती से लागू कर दिया गया जिसका फायदा दिखने भी लगा है।