मोरक्को में आए भूकंप से अमेरिका शक के घेरे में
लंदन । मोरक्को में आए विनाशकारी भूकंप से मौत का आंकड़ा 3 हजार तक पहुंच गया है। आपदा का केंद्र एटलस पहाड़ों के अंदर था। वैसे इस अफ्रीकी देश में भूकंप आना नई बात नहीं, लेकिन ऐसी तबाही बीते कई दशकों में नहीं दिखी थी। एक ओर सरकार लोगों की जान बचाने में लगी है। वहीं दूसरी ओर कंस्पिरेसी थ्यौरी भी जोरों पर है। असल में कुछ रोज पहले सोशम मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें तबाही से ठीक पहले आसमान में रहस्यमयी रोशनी दिखती है। इसके साथ ही ये शक जताया जाने लगा कि ये कुदरती आपदा नहीं, बल्कि किसी हाईटेक लैब का कारनामा है। बहुत सी अंगुलियां अमेरिकी सेना प्रोग्राम हार्प की ओर उठ रही हैं। ये अलास्का में एक वेधशाला में स्थित अमेरिकी परियोजना है जो रेडियो ट्रांसमीटर की मदद से ऊपरी वातावरण (आयनमंडल) का अध्ययन करती है। साल 2022 में इसके मौसम पर कई बड़े प्रोजेक्ट शुरू किए, लेकिन ये कभी नहीं कहा कि इसमें भूकंप ला सकने की क्षमता है। पहले भी कुदरती आपदाओं को लेकर हार्प संदेह के घेरे में रहा हैं। कई देशों में आए भूकंप, सुनामी और भूस्खलन के लिए रिसर्च संस्था को दोषी ठहराया गया।
मिलिट्री लैब की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है कि वे जो रेडियो फ्रीक्वेंसी भेजता है, वे धरती के किसी भी स्तर पर अवशोषित नहीं हो पाता हैं। इसमें इस बात का कोई सवाल ही नहीं कि वे किसी भी तरह से मौसम पर काबू कर सकेगा। वे केवल इसकी स्टडी कर रहा है। इसके बाद भी रह-रहकर उसपर सवाल उठते रहे। फरवरी में तुर्की और सीरिया भूकंप से दहल उठे थे। मरने वालों की संख्या 23 हजार के पार चली गई। इसी दौरान सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुई, जिसमें भूकंप से ठीक पहले प्रभावित इलाकों के आसमान में नीली-पीली रोशनी दिख रही थी। भूकंप के दौरान बिजली भी गिरी। कहा जा रहा है कि भूकंप में बिजली का गिरना कोई सामान्य घटना नहीं। आर्टिफिशियल तरीके से भूकंप आया, जिसमें अमेरिका का हाथ था।
इस तरह की कंस्पिरेसी थ्यौरीज काफी समय से सुनने में आ रही हैं। अनुमान है कि कई देश मौसम को कंट्रोल करके दूसरों पर हमला करने की कोशिश करने वाले हैं। ये हमला हथियारों या परमाणु बम से नहीं होगा, बल्कि कुदरती लगेगा। जैसे बारिश को काबू करके एक देश, अपने दुश्मन देश में सूखा ले आए, या फिर बाढ़ ले आए, जिससे त्राहि-त्राहि मच जाए। भूकंप या सुनामी ला सकना भी इसी श्रेणी में है। यह वैसा ही है, जैसे दुश्मन देश में खतरनाक वायरस या बैक्टीरिया भेजना। सबसे पहले मौसम पर काबू करने की कोशिशें किसने शुरू कीं, इसपर विवाद है। रूस अमेरिका पर आरोप लगाता है, तब अमेरिका रूस पर। वैसे अमेरिका पर ज्यादातर देश हमलावर रहे। अगस्त 1953 में इस देश ने प्रेसिडेंट्स एडवाइजरी कमेटी ऑन वेदर कंट्रोल बनाई। कमेटी समझना चाहती थी कि किस तरह से वेदर मॉडिफिकेशन हो सकता है, ताकि उसे देशहित में उपयोग किया जा सके।
माना जाता है कि अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के समय मानसून को बढ़ाने के लिए क्लाउड सीडिंग को हथियार बनाया था। इससे वियतनामी सेना की सप्लाई चेन बिगड़ गई थी क्योंकि ज्यादा बारिश के कारण जमीन दलदली हो चुकी थी। हालांकि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिल सके कि ये अमेरिकी चाल थी या कुदरती कहर। साल साल 2010 में हैती में आए भूकंप को लेकर अमेरिका और रूस दोनों पर आरोप लगा था।
दोनों देशों की ताकत और आपसी दुश्मनी को देखते हुए साल 1978 में एक संधि हुई, जिसका नाम था। कन्वेंशन ऑन द प्रोहिबिशन ऑफ मिलिट्री ऑर अनी अदर हॉस्टाइल यूज। धीरे-धीरे करके करीब 100 देश इसका हिस्सा बन गए। ये संधि मौसम के अध्ययन के दौरान किसी भी इसतरह के रिसर्च पर रोक लगाती है, जिसके भूकंप या सुनामी जैसी भयावह आपदा आ सके।
कंस्पिरेसी थ्यौरीज भले कुछ भी कहें, लेकिन साइंस कुछ और ही कहता है। भूकंप के ठीक पहले जो रोशनी वहां दिखी, साइंस में इस अर्थक्वेक लाइट कहते हैं। इसके मुताबिक भूकंप की भी अपनी रोशनी होती है, जो जमीन से लेकर आसमान तक का सफर करती है। ये धरती के भीतर भूकंपीय गतिविधि से जुड़े इलेक्ट्रोमैग्नेटिक करंट से पैदा होती है। विस्तार में कहें तब इलेक्ट्रोमैग्नेटिक प्रवाह तब बनता है, जब धरती की टैक्टोनिक प्लेट में भारी हलचल मचे। पहले भी कई बार भूकंप से पहले रोशनी की बात की जा चुकी है। यहां तक कि 17वीं सदी के दस्तावेजों में भी आपदा से पहले रहस्यमयी रोशनी का जिक्र मिलता है।