चैत्र मास में शीतला माता के लिए शीतला सप्तमी 1 अप्रैल और अष्टमी 2 अप्रैल का व्रत-उपवास किया जाता है. इस व्रत में ठंडा खाना खाने की परंपरा है. जो लोग ये व्रत करते हैं, वे एक दिन पहले बनाया हुआ खाना ही खाते हैं. 31 मार्च को रांधा पुआ होगा और 1 अप्रैल को शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन खाया जाएगा .

पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने लोकल 18 को बताया कि 31 मार्च को रांधा पुआ होगा और 1 अप्रैल को शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन खाया जाएगा. कहीं पर सप्तमी के दिन और कहीं पर अष्टमी के दिन ठंडा भोजन किया जाता है. 2 अप्रैल को मंगलवार होने की वजह से 1 अप्रैल को शीतला सप्तमी के दिन भोग लगाया जाएगा और ठंडा भोजन किया जाएगा.

जानें क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त
दरअसल ये समय शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय है. इस दौरान मौसमी बीमारियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. ऐसी मान्यता है कि शीतला सप्तमी और अष्टमी पर ठंडा खाना खाने से हमें मौसमी बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिलती है. चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथि 01 अप्रैल 2024 को रात्रि 09:09 बजे शुरू होगी, जो 02 अप्रैल 2024 को रात्रि 08:08 बजे तक रहेगी.

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने Local 18 को आगे बताया कि कुछ जगह शीतला माता की पूजा चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की सप्तमी को और कुछ जगह अष्टमी पर होती है. इस बार ये तिथियां 1और 2 अप्रैल को रहेंगी. सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य और अष्टमी के देवता शिव होते हैं. दोनों ही उग्र देव होने से इन दोनों तिथियों में शीतला माता की पूजा की जा सकती है. निर्णय सिंधु ग्रंथ के मुताबिक इस व्रत में सूर्योदय व्यापिनी तिथि ली जाती है. इसलिए सप्तमी की पूजा और व्रत सोमवार को किया जाना चाहिए. वहीं शीतलाष्टमी मंगलवार को मनाई जाएगी.

इस मंत्र का करें जाप, मिलेगा रोग से छुटकारा
डा. अनीष व्यास ने बताया कि ऐसी प्राचीन मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती हैं, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्ण कर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं. मां शीतला का पर्व किसी न किसी रूप में देश के हर कोने में मनाया जाता है. अगर आप भय और रोग आदि से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो आपको देवी शीतला के इस मंत्र का 21 बार जप करना चाहिए.
मंत्र है-
वन्देSहं शीतलां देवीं सर्वरोग भयापहम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत्।।
मृणाल तन्तु सदृशीं नाभि हृन्मध्य संस्थिताम्।
यस्त्वां संचिन्त येद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते।।

ठंडा खाने की परंपरा
शीतला माता का ही व्रत ऐसा है, जिसमें शीतल यानी ठंडा भोजन करते हैं. इस व्रत पर एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन करने की परंपरा है. इसलिए इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं. माना जाता है कि ऋतुओं के बदलने पर खान-पान में बदलाव करना चाहिए है. इसलिए ठंडा खाना खाने की परंपरा बनाई गई है. माना जाता है कि देवी शीतला चेचक और खसरा जैसी बीमारियों को नियंत्रित करती हैं और लोग उन बीमारियों को दूर करने के लिए उनकी पूजा करते हैं.

सुख-समृद्धि के लिए व्रत
डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिन्दू धर्म के अनुसार सप्तमी और अष्टमी तिथि पर महिलाएं अपने परिवार और बच्चों की सलामती के लिए और घर में सुख-शांति के लिए बासौड़ा बनाकर माता शीतला को पूजती हैं. माता शीतला को बासौड़ा में कढ़ी-चावल, चने की दाल, हलवा, बिना नमक की पूड़ी चढ़ावे के एक दिन पहले ही रात में बना लेते हैं. अगले दिन ये बासी प्रसाद देवी को चढ़ाया जाता है. पूजा के बाद महिलाएं अपने परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करती हैं.