पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को उत्तर भारत में मोक्षदा एकादशी तो वहीं दक्षिण भारत में विशेष रूप से केरल में इसे गुरुवायुर एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

जी हाँ और मलयालयम पंचांग के अनुसार वृश्चिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी दिन यह पावन पर्व पड़ता है। हालाँकि बहुत ज्यादा पवित्र मानी जाने वाली इस तिथि पर केरल के प्रसिद्ध गुरुवायुर श्रीकृष्ण मंदिर में बड़ी धूम-धाम से पूजा-पाठ और उत्सव मनाया जाता है। आपको बता दें कि दक्षिण भारत के इस मंदिर को स्वामी गुरुवायुरप्पन धाम के नाम से भी जाना जाता है। अब हम आपको बताते हैं गुरुवायुर एकादशी की पूजा का धार्मिक महत्व और शुभ मुहूर्त आदि को विस्तार से जानते हैं।

गुरुवायुर एकादशी का शुभ मुहूर्त- पंचांग के अनुसार इस साल मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 03 दिसंबर 2022 को प्रात:काल 05:39 से प्रारंभ होकर 04 दिसंबर 2022 को प्रात:काल 05:34 बजे तक रहेगी। इसी के साथ पंचांग के अनुसार गुरुवायुर एकादशी इस साल 04 दिसंबर 2022 को मनाई जाएगी और पारण 05 दिसंबर 2022 को प्रात:काल 06:59 से 09:04 बजे के बीच किया जा सकेगा। हालांकि देवस्वोम बोर्ड के अनुसार गुरुवयूर एकादशी 3 और 4 दिसंबर 2022 यानि दोनो दिन मनाई जाएगी।

गुरुवायुर मंदिर का धार्मिक महत्व- भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित केरल के गुरुवायुर मंदिर को स्वामी गुरुवायुरप्पन धाम के नाम से भी जाना जाता है। जहां पर गुरुवायुर एकादशी के समय विशेष पूजा और हाथियों की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। यहाँ गुरुवायुर मंदिर को दक्षिण भारत का द्वारका भी कहा जाता है, और यहाँ देश-विदेश से लोग दर्शन और पूजन के लिए पहुंचते हैं। आप सभी को पता हो कि अभी हाल में रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने इस मंदिर में जाकर विशेष पूजा करने के साथ 1 करोड़ 51 लाख रुपये का चेक भगवान के चरणों में अर्पित किया था।

गुरुवायुर मंदिर की कथा- गुरुवायुर मंदिर के प्रमुख देवता विष्णु हैं, जिन्हें यहां पर उनके अवतार कृष्ण के स्वरूप में पूजा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को स्थानीय लोग गुरुवायुरप्पन कहते हैं। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के बारे में कथा है कि एक बार द्वारका में जब बहुत ज्यादा बाढ़ आई तो उसमें बृहस्पति देवता को भगवान कृष्ण की यह तैरती हुई मूर्ति मिली। जिसे उन्होंने पवन देवता की मदद से बचा लिया। इसके बाद जब वे इसे स्थापित करने के लिए उचित स्थान की खोज करते हुए केरल पहुंचे तो उन्हें यहां पर भगवान शिव व माता पार्वती ने दर्शन देकर मूर्ति को यहीं पर स्थापित करने को कहा। इसके बाद देवगुरु बृहस्पति और पवन देवता ने मूर्ति का विधि-विधान से अभिषेक करके यहां पर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की। तब से यह स्थान 'गुरुवायुर' धाम के नाम से जाना जाता है।