कानपुर | कानपुर में आयुष्मान लाभार्थी अशोक (50) हैलट के वार्ड 18 में रात भर तड़पता रहे। पैर में सड़न थी और संक्रमण पूरे शरीर में फैला हुआ था। डॉक्टर ने तीन हजार की दवा तो मंगा ली लेकिन रोगी को दी ही नहीं। बुधवार तड़के हालत बिगड़ गई तो परिजन उसे लेकर वार्ड से हैलट इमरजेंसी भागे। रोगी के छोटे भाई रंजीत का आरोप है कि जब मौत हो गई तो उसके बाद डॉक्टर ने प्लास्टर बांधा।

मामले की जांच के लिए कमेटी बनाई गई है। हैलट में रोगियों के साथ डॉक्टरों के बर्ताव का यह हाल तब है जब नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) डॉक्टरों में इंसानियत पैदा करने के लिए फाउंडेशन कोर्स चला रहा है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन मेडिकल इथिक्स पर कार्यक्रम करके डॉक्टरों को नसीहत देता है कि रोगियों से अच्छा बर्ताव किया जाए।

दो महीने पहले फर्रुखाबाद के सुल्तानपुर गांव निवासी अशोक के पैर पर टेंपो पलट गया था। उसका पैर टूट गया था। फर्रुखाबाद के अस्पताल में दिखाया। टूटे पैर पर प्लास्टर बांध दिया गया। जब प्लास्टर खुला तो अशोक चल नहीं पा रहा था। इस पर उसे हैलट रेफर कर दिया गया।

15 दिसंबर को हैलट में अस्थि रोग विभाग डॉ. संजय कुमार की यूनिट के जूनियर डॉक्टर शोभित ने उसके पैर पर प्लास्टर कर दिया। परिजन अशोक को गांव लेकर चले गए लेकिन उसके पैर में तकलीफ बढ़ गई। पांच दिन के बाद फर्रुखाबाद के एक अस्पताल में ले जाकर प्लास्टर कटवाया तो पता चला कि पैर में मवाद पड़ चुका है।

भाई रंजीत के अनुसार 27 दिसंबर को परिजन फिर अशोक को हैलट ले गए और डॉक्टर को दिखाया। रंजीत का आरोप है कि जूनियर डॉक्टर को दिखाया तो उसने अभद्रता करनी शुरू कर दी। हाथ-पैर जोड़ने पर तीन हजार की दवाएं लिख दीं। दवा लाए तो इंजेक्शन नहीं लगाया। बोले कि यह मेडिसिन का केस है।

मेडिसिन में जाकर दिखाया तो उन्होंने वापस अस्थि रोग भेज दिया। रोगी की तकलीफ बढ़ती जा रही थी। इसके बाद सर्जरी विभाग भेजा। वहां से भी यही कहा गया कि अस्थि रोग का केस है। रोगी सारी रात स्ट्रेचर पर ही बैठा रहा। रंजीत का कहना है कि अशोक आयुष्मान योजना के लाभार्थी थे। उन्हें आयुष्मान वार्ड भेजने के बजाय वार्ड 18 में भेज दिया। वहां तड़के उनकी तबीयत बिगड़ गई।जल्दी से लेकर उन्हें हैलट इमरजेंसी लाए। रंजीत का कहना है कि सुबह छह बजे अशोक ने दम तोड़ दिया और उसके पैर पर सुबह आठ बजे डॉक्टर ने आकर प्लास्टर बांधा। इमरजेंसी यूनिट के अंदर किसी को नहीं आने दिया। उस वक्त भी डॉक्टर अभद्रता से पेश आया। बाद में उसे डेथ सर्टिफिकेट दे दिया। मौत का कारण कार्डिएक अरेस्ट लिख दिया। बाद में परिजन शव लेकर रोते-बिलखते घर चले गए।

इलाज हो जाता तो भैया बच जाते
अशोक का शव लेकर परिजन रोते बिलखते घर चले गए। रंजीत रोते हुए कहता रहा कि अगर इलाज हो जाता तो भैया बच जाते। उन्हें तो उम्मीद थी कि इलाज से ठीक हो जाएंगे। लोगों के पैर कट जाते हैं तो बच जाते हैं, उनके तो फ्रैक्चर ही हुआ था। लेकिन उनका इलाज नहीं किया गया।